वांकल माता मंदिर विरात्रा धाम राजस्थान के बाड़मेर जिले में चौहटन तहसील से 10 किलोमीटर दूर एक विशाल पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है और दूसरा मंदिर पहाड़ी के नीचे की साइड जमीन पर बना है। वर्तमान में यह स्थान श्री वाकल धाम महातीर्थ विरात्रा के नाम से प्रसिद्ध है आइए आज हम जानते हैं वांकल माता विरात्रा धाम का इतिहास और वांकल धाम जाने की संपूर्ण जानकारी।
वांकल माता विरात्रा धाम का इतिहास | Vankal mata viratra mandir history hindi
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है उज्जैन के राजा विक्रमादित्य (vikramaditya) बलूचिस्तान में विजय होने के बाद वहां स्थित मां हिंगलाज शक्तिपीठ के दर्शन करने गए वहां पर माताजी के सामने नतमस्तक होकर प्रणाम किया और विक्रमादित्य ने माता जी को अपने साथ उज्जैन चलने की प्रार्थना की तब हिंगलाज माताजी ने विक्रमादित्य की प्रार्थना स्वीकार करते हुए आकाशवाणी हुई। हे राजन मैं तुम्हारे साथ उज्जैन चलने के लिए तैयार हूं लेकिन एक बात का ध्यान रखना तुम यहां से चलने के बाद वापस मुड़कर मत देखना। विक्रमादित्य वहां से निकल पड़े उज्जैन के लिए। विक्रमादित्य लगातार चलते रहे और धीरे-धीरे शाम होने लगी और विरात्रा के इस पर्वत तक आ गए रात में अंधेरा हो गया तब यहां विश्राम करने के लिए पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंच गए रात का समय था विक्रमादित्य भ्रमित हो गए चारों तरफ नजर दौड़ाई तब आकाशवाणी हुई। है राजन मेरा वजन पूरा हो गया तुमने वापस मुड़कर हिंगलाज शक्तिपीठ की ओर देख लिया है अब मैं तुम्हारे साथ उज्जैन तक नहीं चल सकती अब मेरा यही पर स्थान होगा तब विक्रमादित्य ने माता जी को प्रणाम किया और यहां पर पहाड़ी की चोटी पर माता जी के मंदिर की स्थापना की। तब से लेकर यह स्थान वांकल माता विरात्रा धाम से प्रसिद्ध है वांकल माता हिंगलाज माता का ही रूप है।
वांकल माता नाम क्यों पड़ा | Vankal mata
मंदिर में स्थापित प्रतिमा में माता जी की गर्दन मुड़ी हुई है इसलिए वांकल नाम पड़ा था। वांकल माता पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता शक्ति पीठ का ही रूप है।
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इस स्थान का विरात्रा नाम क्यों पड़ा | viratra
कहा जाता है जब विक्रमादित्य ने इस जगह पर रात्रि में विश्राम किया था तब इस जगह का नाम विरात्रा पड़ा था।
जमीन पर बने मंदिर का इतिहास
आज के समय में विरात्रा धाम में दो मंदिर है। एक मंदिर पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी पर है और दूसरा मंदिर पहाड़ी के पास ही नीचे की साइड जमीन पर बना है।कहा जाता है यहां पर एक बार वृद्ध महिला माता जी के दर्शन करने आई थी वह महिला पहाड़ी पर नहीं चढ़ पाई तब उस महिला ने माताजी को नीचे आकर दर्शन देने की प्रार्थना की। तब माताजी ने उस महिला की प्रार्थना स्वीकार कर ली और पर्वत की चोटी से एक बड़ा सा पत्थर लुढ़कता हुआ नीचे जमीन पर आकर गिरा और टूट कर दो फाड़ हो गया और इस पत्थर में से वाकल माता की प्रतिमा प्रकट हुई तब यह नीचे वाला मंदिर बना है। आज यहां पर संगमरमर से बना खूबसूरत मंदिर है
भीयड़ जी का मंदिर | Bhiyad ji ka mandir
भीयड़ जी वाकल माता के भक्त थे। भीयड़ जी ने यहां माता जी की सेवा पूजा की और माताजी ने भीयड़ की रक्षा की और आज यहां पर भीयड़ जी का मंदिर बना है।
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पहाड़ी पर स्थित मंदिर का रास्ता
वांकल माता विरात्रा नीचे वाले मंदिर के सामने की साइड प्रवेश द्वार बना है यहां से ऊपर की ओर जाने के लिए सीढ़ियां बनी है। यह सीढ़ियां लगभग 1500 से अधिक है थोड़ा ऊपर की और चढ़ने पर एक मंदिर भगवान शिव का है इस मंदिर का काम अभी चालू है। मंदिर की लगभग आधी सीढ़ियां चढ़ने के बाद यहां एक पानी की प्याऊ है यहां पर यात्री पानी और विश्राम करके माता जी के दर्शन करने आगे की सीढ़ियां चढ़ते हैं पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित मंदिर में पहुंचने के बाद कई किलोमीटर दूर का नजारा साफ-साफ दिखता है ऊपर वाले इस मंदिर में माता जी की प्रतिमा के दर्शन करने हजारों की संख्या में लोग आते हैं और माता जी के सामने अपनी मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं।
विरात्रा धाम का वीडियो देखें
वांकल धाम विरात्रा कैसे जाएं
Viratra dham kese jaye
विरात्रा माता दर्शन के लिए राजस्थान के बाड़मेर जिले मे चौहटन शहर आना होता है। चौहटन से विरात्रा चौराहा से कलानौर रोड पर 8 किलोमीटर की दूरी पर दाहिने साइड में वाकल धाम विरात्रा का प्रवेश द्वार पर बना है यहां से 2 किलोमीटर दूर है विरात्रा धाम।
बाड़मेर से विरात्रा 58 किलोमीटर दूर है
धोरीमन्ना से विरात्रा 68 किलोमीटर दूर है
चोटहन से विरात्रा 10 किलोमीटर दूर है
Jai ma vankal
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