chittorgarh fort history in hindi चित्तौड़गढ़ का किला भारत का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण किलो में से एक है। चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास गौरवमई है, चित्तौड़ पुराने समय में मेवाड़ की राजधानी हुआ करता था। चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण सातवीं सदी में मौर्य शासकों द्वारा किया गया था। चित्तौड़गढ़ का किला राजपूतों की वीरता का प्रतीक है इस किले में कई पवित्र मंदिर विशाल प्रवेश द्वार और भी कई दर्शनीय स्थल किले की शोभा बढ़ाते हैं। तो आइए इस लेख में हम जानते हैं चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास और चित्तौड़गढ़ किले में घूमने की संपूर्ण जानकारी।
चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास – chittorgarh kile ka itihaas in hindi
chittorgarh fort in hindi चित्तौड़गढ़ के किले का इतिहास कई हजारों साल पुराना है यह किला चित्तौड़गढ़ में चलने वाली गंभीर नदी के पास एक ऊंची पहाड़ी पर बना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है यहां पर महाभारत काल में पांडव आए थे। इस किले का निर्माण सातवीं सदी में मौर्य शासकों द्वारा किया गया था कहा जाता है मौर्य शासकों में चित्रांगद मौर्य के नाम से ही इस किले का नाम चित्रकूट पड़ा था। मेवाड़ के पुराने सिक्कों पर चित्रकूट नाम मुद्रित देखने को मिलता है। यह किला राजपूत शासकों की वीरता और सम्मान का प्रतीक है। चित्तौड़ के किले पर कई बार आक्रमण हुए लेकिन यहां के राजपूत शासकों के पराक्रम के आगे कोई भी टिक नहीं पाता था और दुश्मन को हर बार हार का सामना करना पड़ता था। दूर दूर तक फैला यह किला अपने अंदर चित्तौड़गढ़ की वीरता का गौरवमई इतिहास समेटे बैठा है। चित्तौड़गढ़ के इस किले में हर साल हजारों लाखों की संख्या में पर्यटक आते रहते हैं चित्तौड़ के किले में कई देखने लायक स्थान है तो आइए आज हम जानते हैं इस किले में देखने लायक प्रमुख स्थान।
चित्तौड़गढ़ किले में देखने लायक कई प्रमुख स्थान है। आइए इस लेख में हम जानते हैं विस्तार से किले में घूमने लायक स्थान
पाडन पोल – padan pol chittorgarh fort history in hindi
चित्तौड़ के किले में कुल 6 पोल है पोल का मतलब प्रवेश द्वार होता है। किले का सबसे पहला पोल पाडन पोल नाम से जाना जाता है। कहा जाता है एक बार यहां पर घमासान युद्ध में खून की नदी बही थी और उस नदी में एक पाडा (भैंसा) बहता हुआ यहां तक आया था इसीलिए इस पोल को पाडन पोल कहा जाता है।
भैरव पॉल – bhairav pol chittorgarh fort history in hindi
पाडन पोल से थोड़ा आगे चलने पर भैरव पॉल आती है, यह पोल किले का दूसरा प्रवेश द्वार है कहा जाता है इस पोल का नाम देसूरी के सोलंकी भैरव दास के नाम पर पड़ा था जो गुजरात के बादशाह सुल्तान बहादुर शाह के युद्ध में यहां पर वीरगति को प्राप्त हुए थे।
हनुमान पोल – Hanuman Pol Chittorgarh fort
हनुमान पॉल किले का तीसरा प्रवेश द्वार है यहां पर पास में ही हनुमान जी का मंदिर है इसलिए इस पोल का नाम हनुमान पोल पड़ा था।
गणेश पोल – Ganesh Pol Chittorgarh fort
किले का चौथा प्रवेश द्वार गणेश पाल के नाम से जाना जाता है गणेश पोल के पास में ही श्री गजानंद जी का मंदिर है इसलिए इसे गणेश पोल कहा जाता है।
जोड़न पोल – Joden Pol Chittorgarh fort
जोड़न पोल किले का पांचवा प्रवेश द्वार है जोड़न पोल सभी पोलो के नजदीक होने के कारण इसे जोड़न पॉल कहा जाता है।
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लक्ष्मण पॉल – Laxman Pol Chittorgarh fort
किले का छठे प्रवेश द्वार को लक्ष्मण पोल के नाम से जाना जाता है और पास में ही लक्ष्मण मंदिर है इसलिए इस पोल का नाम लक्ष्मण पोल रखा गया।
रामपोल – Ram Pol Chittorgarh fort
किले का सातवां प्रवेश द्वार रामपोल के नाम से जाना जाता है यह पोल किले का अंतिम पोल है, पास में ही मेवाड़ के महाराणाओं के पूर्वज सूर्यवंशी भगवान श्री रामचंद्र जी का मंदिर है जिसका महाराणा कुंभा ने स्थापित किया था इसलिए इस प्रेस प्रवेश द्वार को रामपाल के नाम से जाना जाता है। रामपाल में प्रवेश करते ही दो रास्ते दिखाई देते हैं एक रास्ता ऊपर की तरफ बस्ती में जाता है और दूसरा दक्षिण की ओर किले के मुख्य दर्शनीय स्थलों पर जाता है।
विजय स्तंभ – vijay stambh chittorgarh fort in hindi
विजय स्तंभ का निर्माण महाराणा कुंभा द्वारा मालवा के सुल्तान महमूद शाह तथा कुतुबुद्दीन शाह पर विजय प्राप्त करने के बाद बनाया गया। चित्तौड़गढ़ किले में सबसे प्रसिद्ध विजय स्तंभ 10 फीट ऊंचा, 46 फीट वर्गाकार के आधार पर निर्मित 122 फीट ऊंचा 9 मंजिलों में बना हुआ है, इसमें 156 सीढ़ियां द्वारा ऊपर पहुंचा जा सकता है शिल्प कला के आधार पर विजय स्तंभ की पहचान ही अलग है, पूरे विजय स्तंभ के बाहर तथा अंदर देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई है, विजय स्तंभ के ऊपर से पूरे किला और चित्तौड़ शहर का सुंदर नजारा देखा जा सकता है।
तुलजा भवानी मंदिर चित्तौड़गढ़ किला – tulja bhavani temple chittorgarh fort history in hindi
तुलजा भवानी के इस मंदिर का निर्माण 1536 ईस्वी में इसका निर्माण दासी पुत्र बनवीर ने करवाया था। बनवीर ने इस स्थान पर तुला दान किया था।
बनवीर की दीवार – Banveer ki Diwar ( Banveer wall ) Chittorgarh fort
दासीपुत्र बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य को धोखे से मारकर चित्तौड़ के किले पर अपना अधिकार कर लिया था
बनवीर ने किले को दो भागों में विभाजित करने के लिए एक सुरक्षित व ऊंची और मजबूत दीवार का निर्माण करवाया लेकिन महाराणा उदयसिंह ने उसे वहां से मार कर भगा दिया इसके बाद इस दीवार का निर्माण अधूरा ही रह गया।
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नवलखा भंडार – नौलखा महल – Navlakha Bhandar Naulakha Mahal Chittorgarh fort
बनवीर के द्वारा बनाई गई दीवार के पास एक महल है जिसे नौलखा महल या नवलखा भंडार कहा जाता है। कहां जाता है पुराने समय में मेवाड़ राज्य का पूरा खजाना इसी महल में रखा जाता था और यहां पर अस्त्र-शस्त्र बारूद रखने का गुप्त भंडार भी था इसीलिए इसे नौलखा भंडार कहा जाता है।
भामाशाह की हवेली – bhamashah Ki Haveli Chittorgarh fort hindi
भामाशाह की हवेली एक समय में मेवाड़ की आन बान शान के रक्षक महाराणा प्रताप को मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दान करने वाले दानवीर भामाशाह की याद दिलाने वाली कहा जाता है। हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप का राजकोष खाली हो गया था। मुगलों से युद्ध के लिए बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता थी ऐसे कठिन समय में भामाशाह ने अपनी पीढ़ीयो से इकट्ठा किया हुआ धन महाराणा प्रताप को भेट किया था।
फतेह प्रकाश महल – Fateh Prakash Mahal in Chittorgarh Fort Hindi
उदयपुर के महाराणा फतेह सिंह द्वारा इस महल को बनवाया गया था। इसमें गणेश जी की मूर्ति दर्शनीय हैं जो महल के मुख्य द्वार के सामने स्थापित की गई है इस महल के मध्य के कुंड के बीचो-बीच महाराणा फतेह सिंह की प्रतिमा स्थापित है यह भी देखने योग्य है।
शृंगार चवरी – sangar chavari Chittorgarh fort
यहां पर 4 खंभों वाली छतरी बनी हुई है इसे महाराणा कुंभा की राजकुमारी के विवाह के लिए बनवाया गया था इस लिए यह जगह शृंगार चवरी के नाम से प्रसिद्ध हो गया था। इसके बाहरी भाग में पारसनाथ की मूर्तियां तथा देवी देवताओं की नृत्य मूर्तियां बनाई गई है।
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कुंभ श्याम मंदिर – Kumbh Shyam Mandir in Chittorgarh Hindi
कुंभ श्याम मंदिर का निर्माण महाराणा कुंभा ने करवाया था यह विष्णु भगवान के गर्भ प्रकोष्ठ मंदिर, मंडप व खंभों की सुंदर मूर्तियां व भगवान विष्णु के अनेक रूपों से बनी मूर्तियां दर्शनीय है। भगवान विष्णु के 12 अवतार की मूर्ति प्रकोष्ठ के पिछले भाग में ही थी, यह मंदिर भगवान विष्णु का था परंतु चित्तौड़ के किले पर हुए आक्रमण से मूर्तियां खंडित हो गई उसके पश्चात इस मंदिर में कुंभ श्याम की मूर्ति स्थापित की गई।
मीराबाई का मंदिर – Mirabai Temple Chittorgarh Fort in Hindi
कुंभ श्याम मंदिर के पास ही मीराबाई का मंदिर बना हुआ है
इस मंदिर में मीराबाई श्रीकृष्ण की भक्ति करते हुए सुंदर प्रतिमा स्थापित की गई है। और मीरा बाई मंदिर के सामने संत रैदास की छतरी बनी हुई है।
कीर्ति स्तंभ – Kirti Stambh Chittorgarh Fort
सात मंजिला 75 फीट ऊंचे कीर्ति स्तंभ का निर्माण जैन संप्रदाय के जीजा ने करवाया था। कीर्ति स्तंभ पर भगवान आदिनाथ की मूर्तियां चारों और बनी हुई है तथा अनेक छोटी-छोटी जैन मूर्तियां इसमे सजाई गई हैं, इस स्तंभ के पास ही महावीर स्वामी का जैन मंदिर है, कीर्ति स्तंभ महाराणा कुंभा के समय में यश व कीर्ति के उद्देश्य से करवाया था।
कालिका माता मंदिर – Kalika Mata Temple Chittorgarh Fort
कालिका माता मंदिर यह एक सूर्य मंदिर था परंतु मुगलों के आक्रमण से नष्ट हो जाने के बाद इस मंदिर में कालिका माता की मूर्ति स्थापित की थी। इस मंदिर पर की गई कारीगरी और नक्काशी देखने लायक है नवरात्रि के समय यहां पर विशाल मेला लगता है।
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महाराणा कुंभा के महल – Maharana Kumbha ke Mahal Chittorgarh ka kila
किले में एक महत्वपूर्ण भाग में पुराने राजमहल, बाण माता मंदिर, कुंभा का जनाना महल, मर्दाना महल, कोठार, शिलेखाना बने हुए हैं इस पूरे भाग को कुंभा के महल कहते हैं। कहा जाता है यहीं पर महाराणा उदय सिंह का जन्म हुआ था और पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान बनवीर के हाथों करवाया था। और यहीं पर मीराबाई ने विषपान स्वीकार किया था। यह महल चित्तौड़ का गौरव हैं।
रानी पद्मिनी के महल – Rani Padmavati ke Mahal Chittorgarh fort
रानी पद्मिनी के महल छोटी सी झील के किनारे बने हैं एक छोटा महल पानी के अंदर बना है जो जनाना महल नाम से जाना जाता है। झील के किनारे पर बने महल को मर्दाना महल के नाम से जाना जाता है, इन महलों में महाराजा रतन सिंह की रूपवती रानी पद्मिनी रहती थी। रानी पद्मिनी को पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है।
जयमल पता के महल – Jay Mal pata ke Mahal Chittorgarh Fort
कालीका मंदिर से पहले जयमल पता के महल है जो अभी खंडहर अवस्था में है, राठौड़ जयमल तथा पता सिसोदिया अकबर की सेना के साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे महलों के पास ही एक तालाब है जिसे जयमल पता का तालाब कहते हैं।
महासतिया जौहर स्थल – Mahastia Jauhar Sthal Chittorgarh ka kila
विजय स्तंभ पास ही महासतिया जौहर स्थल है यह स्थान चारों तरफ से दीवारों से घिरा हुआ है, इसमें प्रवेश करने हेतु पूर्व और उत्तर में दो रास्ते बने हुए हैं जिन्हें महासती द्वार कहते हैं कहा जाता है चित्तौड़ में बहादुर शाह के आक्रमण के समय हांडी रानी कर्मावती ने 13000 वीरांगनाओं के साथ यहां जोहर किया था यहां खुदाई में राख की परतें निकली थी।
समीदेश्वर महादेव मंदिर – Samideshwar Mahadev Temple Chittorgarh kila
विजय स्तंभ और महासति जौहर स्थल के पास एक प्राचीन शिव मंदिर है। इस मन्दिर को समीदेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता हैं, इस मंदिर का निर्माण 1011 ई. से 1055 इ. के बीच मालवा के परमार राजा भोज ने करवाया था। परमारो को हरा कर चौलुक्य शासकों ने जब इस क्षेत्र पर अधिकार किया तो चौलुक्य कुमारपाल ने 1150 ई. में समीदेश्वर महादेव मंदिर की यात्रा की थी। उस समय का एक शिलालेख इस मंदिर में मिला है। दूसरा शिलालेख 1428 ई. का है जिसमें महाराणा मोकल द्वारा इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाए जाने का उल्लेख है, इस कारण इसे मोकल जी का मंदिर भी कहते हैं मंदिर के गर्भ गृह के नीचे के भाग में शिवलिंग है तथा पीछे की दीवार में शिव की विशाल आकार की त्रिमूर्ति बनी हुई है।
गौमुख कुंड – gaumukh kund Chittorgarh ka kila
महासती जौहर स्थल के पास ही गौमुख कुंड है जहां एक चट्टान में प्राकृतिक जल एवं भूमिगत जल निरंतर झरने के रूप में दो-तीन जगह से गोमुख से होते हुए पानी शिवलिंग पर गिरता है। कहा जाता है यहां से एक सुरंग कुंभा महल की तरफ जाती है। गौमुख कुंड से कुछ दूरी पर हाथी कुंड तथा खातन बावड़ी है।
सूर्य कुंड – Surya kund Chittorgarh ka kila
कलिका माता मंदिर के सामने एक विशाल कुंड बना हुआ है जिसे सूर्य कुंड कहा जाता है। इसके बारे में एक कहावत प्रसिद्ध है कहा जाता है महाराणा को सूर्य भगवान का आशीर्वाद प्राप्त था इस कुंड में रोजाना सुबह सफेद घोड़े पर सवार एक सशस्त्र योद्धा निकलता था। जो महाराणा को युद्ध में सहायता करता था, जब मुगल बादशाह को इस कुंड के बारे में पता चला तो गाय का रक्त इस कुंड में डलवाकर अशुद्ध कर दिया तो सवार निकलना बंद हो गया था।
गोरा और बादल की हवेली – gora aur Badal Ki Haveli Chittorgarh fort
जब हम इस किले में भ्रमण करते हैं तो हमें गोरा और बादल की हवेली दिखाई देती है। कहा जाता है गोरा रानी पद्मावती के चाचा और बादल चचेरा भाई थे। पाडन पोल के पास गोरा को वीरगति मिली और बादल युद्ध में कम उम्र में ही वीरगति प्राप्त हो गए थे इसीलिए इस हवेली को गोरा और बदल हवेली कहा जाता है।
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अदबुद जी का मंदिर – Adbud ji ka mandir Chittorgarh fort
महाराणा रायमल के समय में इस शिव मंदिर का निर्माण करवाया गया था। इस मंदिर में की गई कारीगरी और कला दर्शनीय है मंदिर में शिवलिंग के पीछे की दीवार पर महादेव जी की विशाल मूर्ति है।
सूरजपोल एवं साईदास का स्मारक – Monument to Surajpol and Saidas
अदबुद जी के मंदिर के आगे थोड़ी दूरी पर एक दरवाजा है यह दरवाजा पूर्व की ओर होने के कारण इसे सूरजपोल कहा जाता है, इस दरवाजे के पास एक चबूतरा बना है जो चुंडावत सरदार साईदास का स्मारक है जो सन 1568 में अकबर की सेना में वीरगति को प्राप्त हुए थे।
नीलकंठ महादेव मंदिर – Nilkanth mhadev mandir chittorgarh fort in hindi
नीलकंठ महादेव सूरजपोल के पास पश्चिम दिशा में एक मंदिर है जहां भगवान नीलकंठ महादेव निवास करते हैं। कहा जाता है भगवान नीलकंठ की इस विशाल प्रतिमा को पांडव अपने बाजू में बांधे रखते थे।
चारभुजा का मंदिर – Charbhuja ka mandir Chittorgarh fort in hindi
इस मंदिर का निर्माण महाराणा शंभू सिंह ने करवाया था मंदिर के आंगन में चांदी के सिक्के जुड़े हुए हैं। और मंदिर में स्थापित चारभुजा की सुंदर प्रतिमा है। इस मंदिर को शंभू कुंड भी कहा जाता है।
बाण माता मंदिर – Banmata mata mandir Chittorgarh fort history in hindi
कहा जाता है यह प्राचीन मंदिर चित्तौड़ जीतने के बाद बप्पा रावल ने द्वीप की राजकुमारी से शादी की थी तो वहीं से यह बाण माता की मूर्ति चित्तौड़ लाकर इस मंदिर में स्थापित की गई थी।
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संग्रहालय एवं तोपखाना – Museum and Artillery Chittorgarh fort hindi
किले में इस संग्रहालय में अनेक प्राचीन वस्तुओं एवं मूर्तियों का संग्रह है। इस पुरानी सामग्री को दुर्ग के अलग-अलग स्थानों से प्राप्त किया है, यहां पर कुछ छोटी-मोटी तोपे रखी गई है जो युद्ध में काम आती थी। किले का यह संग्रहालय देखने लायक है।
राव रणमल की हवेली – Rao Ranmal ki Haweli Chittorgarh
कहा जाता है यहां पर राव रणमल की बहन हंसाबाई से महाराणा लाखा का विवाह हुआ था। महाराणा मोकल हंसाबाई के पुत्र थे यह हवेली गोरा बादल की हवेली से आगे सड़क से विशाल हवेली के खंडहर दिखते हैं।
लखोटी बारी – Lakhoti Bari Chittorgarh fort
किले के उत्तर की ओर महाराणा लाखा के बनवाए दरवाजे को लखोटी बारी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है इसी द्वार पर अकबर की गोली से राठौड़ जयमल लंगड़ा हुए थे यहां एक छोटा दरवाजा हैं जिससे किले से नीचे जाया जा सकता है।
चित्तौड़गढ़ कैसे पहुंचे – Chittorgarh kese jaye
चित्तौड़गढ़ पहुंचने के लिए बस, रेल, और हवाई जहाज द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। चित्तौड़गढ़ भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग से चित्तौड़गढ़ कैसे पहुंचे – Chittorgarh Road se kese jaye
आप सड़क मार्ग से चित्तौड़गढ़ की यात्रा करना चाहते हो तो आसानी से कर सकते हैं। चित्तौड़गढ़ राजस्थान के प्रमुख सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है, अहमदाबाद दिल्ली जयपुर उदयपुर जोधपुर और अजमेर से प्रतिदिन चित्तौड़गढ़ के लिए बसें चलती है।
रेल से चित्तौड़गढ़ कैसे पहुंचे – Train se Chittorgarh kese jaye
अगर आप रेल द्वारा चित्तौड़गढ़ पहुंचना चाहते हो तो चित्तौड़गढ़ जंक्शन भारत के प्रमुख रेलवे मार्गों से जुड़ा हुआ है। चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन राजस्थान के सबसे बड़े रेलवे स्टेशनों में से एक है। आप रेल द्वारा आसानी से चित्तौड़गढ़ पहुंच सकते हैं।
हवाई जहाज से चित्तौड़गढ़ कैसे पहुंचे – aeroplane se Chittorgarh kaise jaye
उदयपुर का डबोक हवाई अड्डा चित्तौड़गढ़ का सबसे निकटतम हवाई अड्डा है। उदयपुर से आप बस या टैक्सी द्वारा चित्तौड़गढ़ पहुंच सकते हैं, डबोक हवाई अड्डा उदयपुर से चित्तौड़गढ़ की दूरी किलोमीटर है।
चित्तौड़गढ़ राजस्थान की यात्रा करने का सही समय – Best time to visit Chittorgarh Rajasthan
आप राजस्थान में चित्तौड़गढ़ में घूमने के लिए साल में कभी भी जा सकते हैं। लेकिन अक्टूबर से मार्च तक यहां पर पर्यटक अधिक संख्या में आते हैं।
चित्तौड़गढ़ में कहा ठहरे – Where to stay in Chittorgarh
आप चित्तौड़गढ़ की यात्रा पर आए हो और यहां पर ठहरने के लिए होटल की तलाश कर रहे हो तो यहां पर आपको अपने बजट के अनुसार कई महंगी और सस्ती होटल मिल जाएगी जहां आप रात्रि विश्राम कर सकते हैं।
चित्तौड़गढ़ में सेठ सांवरिया जी मंदिर की यात्रा – Sanwaliya Seth Mandir Chittorgarh ki yatra
अगर आप चित्तौड़गढ़ घूमने आते हो तो सेठ सांवरिया जी मंदिर के दर्शन करने जरूर जाइए। सांवलिया जी सेठ का मंदिर चित्तौड़ से 45 किलोमीटर की दूरी पर भादसोड़ा गांव के पास मंडफिया गांव में स्थित है। और उदयपुर से सांवलिया सेठ की मंदिर 77 किलोमीटर है। मंडफिया गांव में भगवान श्री सांवलिया सेठ का भव्य मंदिर है, यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है, चित्तौड़गढ़ घूमने वाले पर्यटक सांवलिया जी मंदिर जरूर जाते हैं।